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हर रोज ओरछा से इस तरह अयोध्या जाते हैं राम:यहां भगवान का राजा जैसा प्रोटोकॉल; देखिए विदाई की पूरी प्रोसेस

अयोध्या के राम मंदिर से कोई 458 किलोमीटर दूर एक और अयोध्या है। बुंदेलखंड में… 

रात के साढ़े नौ बजे हैं और ओरछा में अयोध्या के लिए राजा राम की विदाई की तैयारी चल रही है। मध्यप्रदेश पुलिस का सशस्त्र जवान गार्ड ऑफ ऑनर देने के लिए तैयार है। थोड़ी ही देर में राजसी ठाठ बाट के साथ सवारी चल पड़ती है। चंद फासले पर ही हनुमान मंदिर में रुकती है। यहां हनुमानजी से आग्रह किया जाता है कि वे राजा राम को अयोध्या ले जाएं।

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक राजा राम की अयोध्या के लिए ओरछा से विदाई बरसों से इसी तरह हो रही है। दिनभर का राजकाज निपटाने के बाद राजा राम रोज इसी तरह अयोध्या जाते हैं अपने घर शयन के लिए।

ओरछा में राम राजा के रूप में रहते हैं, इसलिए राजा और राज दरबार का अपना प्रोटोकॉल है। इसका पालन पूरी तरह होता है, कुछ व्यवस्थाओं के माध्यम से और कुछ परंपरा के मुताबिक।

आइए, राम राजा की अयोध्या के लिए विदाई की पूरी प्रोसेस को नजदीक से देखते हैं..

 

…जब लाव लश्कर के साथ कारवां निकलता है

कंपकंपा देने वाली सर्द रात। घंटियों की घनघनाहट। शंख, ढोल-नगाड़ों की गूंज और भक्ति में डूबे श्रद्धालु। राजा राम की आरती चल रही है। आरती पूरी होने के साथ ही पुजारी विजय गोस्वामी राजा का सिंहासन बाहर लेकर आते हैं। इसके साथ ही राज दरबार के पट बंद कर दिए जाते हैं। इस सिंहासन पर उस दीपक को रखा जाता है, जिससे आरती हुई। दीपक को ही राजा राम मानकर सवारी शुरू होती है।

किताबों में पढ़ा था राजा लाव लश्कर के साथ निकलते थे। कुछ वैसा ही दृश्य। छत्र। सैनिक (पुलिसकर्मी) और जयघोष करती प्रजा यानी भक्त। पांच मिनट में ही राजा का कारवां पाताली हनुमान मंदिर पहुंच जाता है। राजा को यहीं विदा कर प्रजा भी विदा ले लेती है। इस मान्यता के साथ कि अब हनुमानजी राजा राम को अयोध्या ले जाएंगे। वहीं शयन करेंगे।

 

राजा की विदाई की इस प्रक्रिया के सालों से साक्षी रिटायर्ड शिक्षक मुकुंद हरि गोस्वामी एक प्रचलित दोहे का जिक्र करते हैं, जिसमें अयोध्या और ओरछा का कनेक्शन पता चलता है- ‘सर्व व्यापक राजा राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं शयन अयोध्यावास।’ राजा राम अयोध्या तो चले जाते हैं, फिर आते कैसे हैं? जानकी मंदिर के पुजारी हरीश दुबे कहते हैं- ‘राजा प्रजा के लिए स्वयं प्रकट होते हैं। यही राजधर्म है।’

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